पूजा में अल्लाह को एक मानना अनिवार्य है।
سيف الرحمن التيمي
موضوع الخطبة : وجوب إفراد الله بالعبادة
الخطيب : فضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي حفظه الله
لغة الترجمة : الهندية
المترجم : فيض الرحمن التيمي
उपदेश का शीर्षक:
पूजा में अल्लाह को एक मानना अनिवार्य है।
प्रथम उपदेश:
إن الحمد لله، نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا، ومن سيئات أعمالنا من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وأشهد أن لا إله إلا الله وحده لا شريك له، وأشهد أن محمدًا عبده ورسوله
(يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ )
(يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُواْ رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِيرًا وَنِسَاء وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِي تَسَاءلُونَ بِهِ وَالأَرْحَامَ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا )
(يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَن يُطِعْ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيمًا)
प्रशंसाओं के पश्चात:
सर्वश्रेष्ठ बात अल्लाह की बात है एवं सर्वोत्तम मार्ग मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मार्ग है। दुष्टतम चीज़ धर्म में अविष्करित बिदअ़त (नवाचार) हैं और प्रत्येक बिदअ़त (नवोन्मेष) गुमराही है और हर गुमराही नरक में ले जाने वाली है।
ए मुसलमानो! अल्लाह तआ़ला से डरो और उसका भय रखो उसकी आज्ञाकारिता करो और उसकी अवज्ञा से बचो और यह जान लो कि अल्लाह तआ़ला का सबसे बड़ा आदेश तौही़द (एकेश्वरवाद) है तौही़द का (अर्थ) है उपासना में अल्लाह को एक जानना और मानना (इस प्रकार कि) आप केवल उसी की पूजा करें उसके साथ किसी को साझी ना बनाएं वह ऐसा उद्देश है जिसके कारण ही अल्लाह ने मनुष्य एवं जिन्न को पैदा किया, अल्लाह रब्बुल आ़लमीन का कथन है:
وَمَا خَلَقۡتُ ٱلۡجِنَّ وَٱلۡإِنسَ إِلَّا لِیَعۡبُدُونِ (الذاريات: 56)
अर्थात: " मैंने मनुष्य एवं जिन्न को केवल अपनी पूजा के लिए पैदा किया। "
इब्ने तैमिया रहमतुल्लाहि अलैहि फ़रमाते हैं:
" नमाज़, ज़कात,( दान दक्षिणा) रोज़ा (उपवास) ह़ज, सच बोलना, अमानत को पूरा करना, माता पिता के साथ सुंदर व्यवहार करना, परिजनों के साथ उत्तम व्यवहार करना, पुण्य का आदेश देना, और पाप से रोकना, काफ़िर एवं कपटीयों से जिहाद करना, पड़ोसी, ग़रीब, यात्री और ग़ुलामों के साथ सुंदर व्यवहार करना, पशुओं के साथ अच्छा व्यवहार करना, प्रार्थना, ज़िक्र व अज़कार, पवित्र क़ुरआन का सस्वर पाठ और इस प्रकार के अन्य कार्य पूजा में शामिल होते हैं।
इसी प्रकार अल्लाह और उसके रसूल (संदेशवाहक) से प्रेम करना, अल्लाह का भय रखना, और उसकी निकटता प्राप्त करना, अल्लाह के धर्म को शुद्ध करना, उसके आदेश पर सब्र करना, उसकी नेमत (कृपा) का धन्यवाद करना, उसके निर्णय से प्रसन्न होना, उस पर विश्वास करना, उसकी कृपा का आशा करना, उसकी यातना का भय रखना भी अल्लाह की पूजा में शामिल हैं।"
इब्न-ए-तैमिया रहमतुल्लाहि अलैहि का कथन समाप्त हुआ।
ए अल्लाह के बंदो (दास)! नि: संदेह पैग़बर और संदेशवाहकों की दावत तौहीद के इसी प्रकार अर्थात एकेश्वरवाद में शामिल थी।, अल्लाह का कथन है:
وَمَاۤ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ مِن رَّسُولٍ إِلَّا نُوحِیۤ إِلَیۡهِ أَنَّهُۥ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّاۤ أَنَا۠ فَٱعۡبُدُونِ. (الأنبياء:25)
अर्थात: " इससे पूर्व जो भी रसूल (संदेशवाहक) हम ने भेजा उसकी ओर यही वह़्य अवतरित की कि मेरे अतिरिक्त कोई सत्य परमेश्वर नहीं है, इसलिए तुम सब केवल मेरी ही पूजा करो।"
समस्त पैग़ंबर (संदेशवाहक) अपने समुदाय से यही कहा करते थे:
ٱعۡبُدُوا۟ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُ.(الأعراف:59)
अर्थात: " अल्लाह की पूजा करो और उसके अतिरिक्त कोई तुम्हारा परमेश्वर नहीं।"
ए मोमिनो! समस्त असत्य पर मेश्वरों की अतिरिक्त अल्लाह ही पूजा व उपासना का पात्र है, इसका सबसे बड़ा साक्ष्य यह है कि उसने अकेले इस संसार को पैदा किया इसमें कोई उसका साझी एवं सहायक नहीं, रुबूबीयत के अंदर रचना, राजशाही, उपाय और रिज़्क़ प्रदान करना भी शामिल है। रचनाकार एवं पालनहार रोज़ी प्रदान करने वाला, आदेश देने वाला, और उपाय करने वाला केवल अल्लाह ही है।
अल्लाह तआला रचना में अपने अकेलेपन का उल्लेख करते हुए फ़रमाया:
ٱللَّهُ خَـٰلِقُ كُلِّ شَیۡءٍ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ وَكِیلࣱ. (الزمر:62)
अर्थात: " अल्लाह हर वस्तु को पैदा करने वाला और हर चीज़ का ज़िम्मा लेने वाला है।"
राजशाही में अपने अकेलेपन को स्पष्ट करते हुए फ़रमाया:
ذَ ٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ لَهُ ٱلۡمُلۡكُۚ وَٱلَّذِینَ تَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ مَا یَمۡلِكُونَ مِن قِطۡمِیرٍ (فاطر:13)
अर्थात: " वह अल्लाह तुम्हारा रब है, उसी की बादशाही है, उससे हटकर जिनको तुम पुकारते हो वह एक खजूर की गुठली के छिलके का भी मालिक नहीं।"
"क़ितमीर" सफ़ेद पतले छिलके को कहते हैं, जो खजूर की गुठली पर होता है।
आदेश लागू करने और उपाय करने में उसके अकेले होने का साक्ष्य यह है:
وَإِلَیۡهِ یُرۡجَعُ ٱلۡأَمۡرُ كُلُّهُ. (هود:123)
अर्थात: " और हर मामला उसी की ओर पलट ता है।"
संसार का संचालन, जिसमें जीवन एवं मृत्यु देना, वर्षा एवं सूखा उत्पन्न करना, धनी एवं गरीब बनाना, स्वस्थ एवं रोगी करना, शांति प्रदान करना एवं भय उत्पन्न करना और इनके अतिरिक्त वे समस्त चीज़ें शामिल हैं, जो इस संसार में घटती हैं, वे समस्त अल्लाह के आदेश से ही घटते हैं।
रोज़ी प्रदान करने में अल्लाह के अकेले होने का साक्ष्य अल्लाह का यह कथन है:
إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلرَّزَّاقُ ذُو ٱلۡقُوَّةِ ٱلۡمَتِینُ. (الذاريات:58)
अर्थात: " निश्चय अल्लाह ही रोज़ी देने वाला शक्तिशाली दृढ़ है।"
ए मुसलमानो! एकेश्वरवाद का विपरीत अल्लाह के साथ बहुदेववाद करना है। बहुदेववाद यह है कि: किसी भी पूजा को अल्लाह के अतिरिक्त के लिए करना इस प्रकार के मनुष्य अल्लाह के लिए कोई ऐसा साझी बना ले जिसकी वह उसी प्रकार पूजा करे जिस प्रकार अल्लाह की पूजा करता है, उससे उसी प्रकार डरे जिस प्रकार वह अल्लाह से डरता है, किसी भी उपासना के माध्यम से उसी प्रकार उसकी निकटता प्राप्त करे जिस प्रकार अल्लाह की निकटता प्राप्त करता है, उन लोगों के जैसा जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, उनके लिए बलि चढ़ाते हैं उनका तवाफ़ (चक्कर) करते हैं, उनके चौखट को चूमते हैं, और उनसे बरकत प्राप्त करते हैं, उनका यह विश्वास होता है कि यह क़ब्र वाले रोज़ी-रोटी प्रदान करते हैं अथवा लाभ हानि पहुंचाते हैं इसी प्रकार अन्य कार्य पूरा करते हैं।
यह ऐसे बहुदेववादी कार्य हैं जो दासों के लिए विश्वास प्रबल कर देते हैं की असत्य परमेश्वर के अतिरिक्त अल्लाह ही समस्त प्रकार की पूजाओं का पात्र है।
अल्लाह के दासो! बहूदेववाद वह सबसे बड़ी अवज्ञा है जिससे अल्लाह ने रोका है अल्लाह तआ़ला ने अपने पैग़ंबर से फ़रमाया:
وَلَقَدۡ أُوحِیَ إِلَیۡكَ وَإِلَى ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِكَ لَىِٕنۡ أَشۡرَكۡتَ لَیَحۡبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡخَـٰسِرِینَ. بَلِ ٱللَّهَ فَٱعۡبُدۡ وَكُن مِّنَ ٱلشَّـٰكِرِینَ. (الزمر:65-66)
अर्थात: " तुम्हारी ओर और जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं उनकी ओर भी वह्य़ की जा चुकी है कि यदि तुमने शिर्क किया तो तुम्हारा किया धरा अनिवार्यत: अकारत हो जाएगा और तुम अवश्य ही घाटे में पड़ने वालों में से हो जाओगे,बल्कि अल्लाह ही की बंदगी करो और कृतज्ञता दिखाने वालों में से हो जाओ।"
नि: संदेह अल्लाह ने बहूदेववाद के लिए बड़ी यातना निश्चित की है अल्लाह का कथन है:
إِنَّهُۥ مَن یُشۡرِكۡ بِٱللَّهِ فَقَدۡ حَرَّمَ ٱللَّهُ عَلَیۡهِ ٱلۡجَنَّةَ وَمَأۡوَىٰهُ ٱلنَّارُۖ وَمَا لِلظَّـٰلِمِینَ مِنۡ أَنصَارࣲ. (المائدة:72)
अर्थात: " जो कोई भी अल्लाह का साझी ठहराएगा उस पर अल्लाह ने स्वर्ग को ह़राम कर दिया कर दिया है और उसका ठिकाना नरक है अत्याचारों का कोई सहायक नहीं।"
ऐ विश्वासियो ! अल्लाह ने बहूदेववाद को असत्य घोषित कर दिया है जिसके अनेक इस्लामी एवं तार्किक प्रमाण हैं, जहां तक इस्लामी साक्ष्य की बात है तो उसका उदाहरण अल्लाह का यह कथन है:
إِنَّهُۥ مَن یُشۡرِكۡ بِٱللَّهِ فَقَدۡ حَرَّمَ ٱللَّهُ عَلَیۡهِ ٱلۡجَنَّةَ وَمَأۡوَىٰهُ ٱلنَّارُۖ وَمَا لِلظَّـٰلِمِینَ مِنۡ أَنصَارࣲ. (المائدة:72)
अर्थात: " जो कोई भी अल्लाह का साझी ठहराएगा उस पर अल्लाह ने स्वर्ग को ह़राम कर दिया है और उसका ठिकाना नरक है अत्याचारों का कोई सहायक नहीं।"
जहां तक बहुदेववाद को असत्य कर देने वाले तार्किक साक्ष्य की बात है तो वे अनेक हैं सबसे महत्वपूर्ण यह दो साक्ष्य साक्ष्य हैं:
१-प्रथम साक्ष्य यह है कि बहुदेववादी जिन परमेश्वरों की पूजा करते हैं उनके अंदर एकेश्वरवाद का कोई लक्षण नहीं पाया जाता है वे ऐसे जीव हैं जो रचना नहीं कर सकतीं, अपने पूजने वालों को लाभ पहुंचा सकतीं और न ही हानि पहुंचा सकतीं न उनकी मृत्यु व जीवन उनके हाथ में है, ना ही आकाश और पृथ्वी की कोई अन्य चीज़, और न ही वह अल्लाह को अपनी संपत्ति में साझी कर सकती हैं अल्लाह का कथन है:
وَٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦۤ ءَالِهَةً لَّا یَخۡلُقُونَ شَیۡـًٔا وَهُمۡ یُخۡلَقُونَ وَلَا یَمۡلِكُونَ لِأَنفُسِهِمۡ ضَرًّا وَلَا نَفۡعًا وَلَا یَمۡلِكُونَ مَوۡتًا وَلَا حَیَوٰةً وَلَا نُشُورًا. (الفرقان:3)
अर्थात: " फिर भी उन्होंने उससे हटकर ऐसे इष्ट-पूज्य बना लिए जो किसी चीज़ को पैदा नहीं करते, बल्कि वे स्वयं पैदा किए जाते हैं, उन्हें ना तो अपनी हानि का अधिकार प्राप्त है और ना लाभ का और ना उन्हें मृत्यु का अधिकार प्राप्त है और ना ही जीवन का और ना दोबारा जीवित होकर उठने का।"
अल्लाह तआ़ला ने इसके अतिरिक्त फ़रमाया:
قُلِ ٱدۡعُوا۟ ٱلَّذِینَ زَعَمۡتُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ لَا یَمۡلِكُونَ مِثۡقَالَ ذَرَّةٍ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَلَا فِی ٱلۡأَرۡضِ وَمَا لَهُمۡ فِیهِمَا مِن شِرۡكٍ وَمَا لَهُۥ مِنۡهُم مِّن ظَهِیرٍ. وَلَا تَنفَعُ ٱلشَّفَـٰعَةُ عِندَهُۥۤ إِلَّا لِمَنۡ أَذِنَ لَهُۥۚ حَتَّىٰۤ إِذَا فُزِّعَ عَن قُلُوبِهِمۡ قَالُوا۟ مَاذَا قَالَ رَبُّكُمۡۖ قَالُوا۟ ٱلۡحَقَّۖ وَهُوَ ٱلۡعَلِیُّ ٱلۡكَبِیرُ. (سبأ:22-23)
अर्थात: " कह दो, अल्लाह को छोड़कर जिनका तुम्हें (उपास्य होने का) दावा है उन्हें पुकार कर देखो वे ना आकाश में कण भर चीज़ के मालिक हैं और ना ही धरती में और ना उन दोनों में उनका कोई साझी है और उनमें से कोई उसका सहायक है। और उसके यहां कोई सिफारिश काम नहीं आएगी किंतु उसी की जिसे उसने (सिफारिश करने की) अनुमति दी हो, यहां तक कि जब उनके दिलों से घबराहट दूर हो जाएगी तो वे कहेंगे: तुम्हारे रब ने क्या किया? वे कहेंगे: सर्वथा सत्य, और वह अत्यंत उच्च महान है जब उन परमेश्वर की यह स्थिति हो तो उनको परमेश्वर मानना प्रलय स्तर की मूर्खता और प्रलय स्तर की निराधार बात है।"
२-अल्लाह के दासो! बहुदेववाद के असत्य होने का द्वितीय साक्ष्य यह है कि यह बहुदेववादी इस बात को मानते हैं कि नि: संदेह अल्लाह ही केवल पालनहार एवं रचनाकार है जिसके हाथ में हर चीज़ की बादशाहत है, वही मुक्ति प्रदान करता है, उसकी यातना से कोई मुक्ति देने वाला नहीं ( बहुदेववादीयों के इस विचार से) यह बात आवश्यक रूप से समझ में आती है कि वह एकेश्वरवाद में अल्लाह को एक मानते थे जिस प्रकार रुबूबीयत ( पालनहार मानना) में अल्लाह को एक मानते थे जैसा कि अल्लाह का कथन है:
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ ٱعۡبُدُوا۟ رَبَّكُمُ ٱلَّذِی خَلَقَكُمۡ وَٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ. ٱلَّذِی جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ فِرَ ٰشࣰا وَٱلسَّمَاۤءَ بِنَاۤءࣰ وَأَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ فَأَخۡرَجَ بِهِۦ مِنَ ٱلثَّمَرَ ٰتِ رِزۡقࣰا لَّكُمۡۖ فَلَا تَجۡعَلُوا۟ لِلَّهِ أَندَادࣰا وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ. (البقرة:21-22)
अर्थात: "ए लोगो! बंदगी करो अपने रब की जिस ने तुम्हें और तुम से पहले के लोगों को पैदा किया ताकि तुम परहेज़गार बन सको वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को फ़र्श और आकाश को छत बनाया और आकाश से पानी उतारा फिर उसके द्वारा हर प्रकार की पैदावार की और फल तुम्हारी रोज़ी के लिए पैदा किया अत: जब तुम जानते हो तो अल्लाह के लिए सहकर्मी ना ठहराओ।"
इन समस्त प्रमाणों के आधार पर हर वह चीज़ जिसे परमेश्वर मानकर अल्लाह के अतिरिक्त अथवा अल्लाह के साथ उसकी पूजा की जाए, उसकी पूजा असत्य एवं निराधार है, जैसा कि अल्लाह तआ़ला का कथन है:
ذَ ٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡحَقُّ وَأَنَّ مَا یَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ هُوَ ٱلۡبَـٰطِلُ وَأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡعَلِیُّ ٱلۡكَبِیرُ.(الحج:62)
अर्थात: " यह इसलिए कि अल्लाह ही सत्य है और जिसे वे उसको छोड़ कर पुकारते हैं वह सब असत्य हैं और यह कि अल्लाह ही सर्वोच्च महान है।"
अल्लाह मेरे और आपके लिए पवित्र क़ुरआन में बरकत डाल दे, मुझे और आपको आयत व हि़कमत पर आधारित परामर्श के माध्यम से लाभ पहुंचाए, मैं अपनी यह बात कहते हुए अल्लाह से अपने लिए और आप सबके लिए क्षमा प्राप्त करता हूं, आप भी उस से क्षमा प्राप्त करें, नि: संदेह वह अपने पापों की क्षमा प्राप्त करने वाले को अति क्षमा प्रदान करने वाला वाला है।
द्वितीय उपदेश:
الحمد لله و كفى وسلام على عباده الذين اصطفى أما بعد!
प्रशंसाओं के पश्चात:
आप याद रखें -अल्लाह आप पर कृपा करे- कि उपासनाओ में सबसे अधिक जिनमें लोग अल्लाह और उसके जीव को एक दूसरे का साझी बनाते हैं, वह प्रार्थना है,क़ुरआन एवं ह़दीस के अंदर प्रार्थना को मात्र अल्लाह के लिए शुद्ध करने के महत्व और अल्लाह के अतिरिक्त से प्रार्थना करने से रुकने पर ज़ोर दिया गया है अल्लाह का कथन है:
ٱدۡعُوا۟ رَبَّكُمۡ تَضَرُّعࣰا وَخُفۡیَةًۚ. (الأعراف:55)
अर्थात: "अपने रब को गिड़गिड़ा कर और चुपके चुपके पुकारो।"
अल्लाह ने इसके अतिरिक्त फ़रमाया:
أَمَّن یُجِیبُ ٱلۡمُضۡطَرَّ إِذَا دَعَاهُ وَیَكۡشِفُ ٱلسُّوۤءَ وَیَجۡعَلُكُمۡ خُلَفَاۤءَ ٱلۡأَرۡضِۗ. (النمل:62)
अर्थात: " या वह जो व्यग्र की पुकार सुनता है जब वह उसे पुकारे और तकलीफ़ दूर करता है और तुम्हें धरती में अधिकारी बनाता है।"
अल्लाह का कथन है:
وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِی عَنِّی فَإِنِّی قَرِیبٌۖ أُجِیبُ دَعۡوَةَ ٱلدَّاعِ إِذَا دَعَانِۖ. (البقرة:186)
अर्थात: " और जब तुमसे मेरे बंदे मेरे संबंध में पूछे तो में तो निकट ही हूं पुकार का उत्तर देता हूं जब वह मुझे पुकारता है।"
अल्लाह तआ़ला का यह भी कथन है:
وَسۡـَٔلُوا۟ ٱللَّهَ مِن فَضۡلِهِۦۤۚ (النساء:32)
अर्थात: " अल्लाह से उसका उदार दान चाहो।"
अनेक रूप एवं सूत्रों में क़ुरआन के अंदर ३०० विभिन्न स्थानों पर प्रार्थना के अंदर अल्लाह के अकेलेपन का साक्ष्य आया है।
ए अल्लाह के दासो! प्रार्थना में इख़्लास (शुद्धता) को अपनाओ, तुम्हें सफ़लता मिलेगी। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
مَنْ مَاتَ وَهُوَ يَدْعُو مِنْ دُونِ اللَّهِ نِدًّا دَخَلَ النَّارَ. (البخاري:4497)
अर्थात: " जिस व्यक्ति की मृत्यु इस स्थिति में हो कि वह अल्लाह के अतिरिक्त अन्य को भी अल्लाह का साझी बनाता रहा तो वह नरक में जाता है।" 1{ इसे बुख़ारी(४४९७)ने विवरण किया है।}
सह़ीह़ैन (बुख़ारी व मुस्लिम) में है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से प्रश्न किया गया कि अल्लाह तआ़ला के निकट सबसे बड़ा पाप क्या है? पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
أَنْ تَجْعَلَ لِلَّهِ نِدًّا وَهُوَ خَلَقَكَ. (البخاري:4761، مسلم:86)
अर्थात: "यह कि तुम अल्लाह के साथ किसी को बराबर मानो जबकि अल्लाह ही ने तुमको पैदा किया है।"
2{इसे बुख़ारी( ४७६१) एवं मुस्लिम( ८६) ने इब्ने मसऊद रज़ि अल्लाहु अन्हु से वर्णन किया है।}
"निद" का अर्थ समान और बराबर के हैं। हर वह व्यक्ति जिसने अल्लाह के अतिरिक्त से प्रार्थना की अथवा उससे सहायता मांगी अथवा उसके लिए बलि चढ़ाई अथवा उसके लिए किसी प्रकार की पूजा की मानो उसने उसे अल्लाह के साथ बराबर माना चाहे जिसे (सामान्य स्थान दिया जा रहा है) वह कोई पैग़ंबर हो, अथवा वली, कोई राजा हो,अथवा जिन्न, कोई मूर्ति हो अथवा कोई अन्य जीव।
क़ुरआन में दो स्थानों पर अल्लाह ने अपने अतिरिक्त अन्य से प्रार्थना करने को असत्य और निराधार घोषित कर दिया है, प्रथम स्थान सुरह-ए-ह़ज के अंदर है, अल्लाह का कथन है:
ذَ ٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡحَقُّ وَأَنَّ مَا یَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ هُوَ ٱلۡبَـٰطِلُ. (الحج:62)
अर्थात: "यह इसलिए कि अल्लाह ही सत्य है और जिसे वे उसको छोड़ कर पुकारते हैं वह सब असत्य हैं।"
द्वितीय स्थान सूरह-ए-लुक़मान के अंदर है, अल्लाह का कथन है:
ذَ ٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡحَقُّ وَأَنَّ مَا یَدۡعُونَ مِن دُونِهِ ٱلۡبَـٰطِلُ. (لقمان:30)
अर्थात: "यह इसलिए कि अल्लाह ही सत्य है और जिसे वे उसको छोड़ कर पुकारते हैं वह सब असत्य हैं।"
ऐ मुसलमानो! प्रार्थना के अंदर बहुदेववाद प्राचीन काल में भी पाया गया और आधुनिक काल में भी पाया जाता है, चाहे यह बहुदेववाद मूल बहुदेववादीयों के मध्य हो जैसे इसाई जिन्होने मसीह से प्रार्थना की, अथवा भारतीय धर्मों के मानने वालों में हो जो गाय को पुकारते हैं तथा अपने हाथों से बनाए हुए प्रतिमाओं और बुतों से प्रार्थना करते हैं,इनके अतिरिक्त भी अनेक लोग हैं जो प्रार्थना में बहुदेववाद करते हैं। इसी प्रकार कुछ ऐसे दलों के यहां भी प्रार्थना के अंदर बहुदेववाद पाया जाता है जो अपना संबंध इस्लाम की ओर करते हैं,जैसे वह अतिशयोक्तिपूर्ण सूफ़ी गण जो अपने बुज़ुर्गों को पुकारते हैं और उनसे शुभकामनाएं प्राप्त करते हैं, इसी प्रकार वे रवाफ़िज़ (अस्वीकार करने वाला) जो अहल-ए-बैत (आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के परिवार) को पुकारते हैं, इसी प्रकार क़ब्र पूजने वाले लोग जो क़ब्र वाले को पुकारते हैं यह समस्त लोगों का इस प्रकार के बहुदेववाद के बावजूद यह भ्रम रखते हैं कि वह मुसलमान हैं और पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से प्रेम करने वाले हैं जबकि इस्लाम उनके बहुदेववाद से मुक्त है, हम इस प्रकार की अंधभक्ति से अल्लाह का शरण चाहते हैं और अल्लाह से यह प्रार्थना करते हैं कि वह हमारे ऊपर एकेश्वरवाद व सुन्नत का कृपा अंत तक बनाए रखे आप याद रखें -अल्लाह आप पर दया करे- कि अल्लाह ने आपको एक बड़े कार्य का आदेश दिया है अल्लाह का कथन है:
إِنَّ ٱللَّهَ وَمَلَـٰۤىِٕكَتَهُۥ یُصَلُّونَ عَلَى ٱلنَّبِیِّۚ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِین ءَامَنُوا۟ صَلُّوا۟ عَلَیۡهِ وَسَلِّمُوا۟ تَسۡلِیمًا. (الأحزاب:56)
अर्थात: "अल्लाह तआ़ला एवं उसके देवदूत उस पैग़ंबर पर रह़मत (कृपा) भेजते हैं ए विशवासियो! तुम भी उन पर अधिक से अधिक दुरूद (अभिवादन) भेजते रहा करो।"
पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने समुदाय को शुक्रवार के दिन अपने ऊपर अधिक से अधिक दुरूद (इभिादन) भेजने का अादेश दिया है आपका कथन है:
अर्थात: " तुम्हारे पवित्र दिनों में से शुक्रवार का दिन है इसीलिए उस दिन तुम लोग मुझ पर अधिक से अधिक दुरूद (अभिवादन) भेजा करो, क्योंकि तुम्हारा दुरूद मुझ पर प्रस्तुत किया जाता है।"
हे अल्लाह तू अपने बंदे व रसूल (दास एवं संदेशवाहक) मोह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दया, कृपा एवं शांति भेज, तू उनके ख़ुलफ़ा (मोह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उत्तराधिकारीयों) ताबेईन (समर्थक) एवं क़यामत तक आने वाले समस्त आज्ञाकार्यों से प्रसन्न हो जा!
हे अल्लाह! इस्लाम एवं मुसलमानों को सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्रदान कर, बहुदेववाद एवं बहुदेववादियों को अपमानित कर दे,तू अपने एवं इस्लाम के शत्रुओं एवं विरोधीयों को नाश कर दे,तू अपने मुवह्हि़द बंदों (अव्दैतवादियों) को सहायता प्रदान कर। हे अल्लाह! तू हमारे देशों को शांतिपूर्ण बना दे, हमारे इमामों (प्रतिनिधियों), शासकों को सुधार दे, उन्हें हिदायत (सही मार्ग) का निर्देश दे, और हिदायत पर चलने वाला बना दे।
हे अल्लाह! तू समस्त मुस्लिम शासकों को अपनी पुस्तक को लागू करने एवं अपने धर्म के उत्थान की तौफ़ीक़ प्रदान कर, उनको उनके प्रजा के लिए रह़मत (दया) का कारण बना दे।
हे अल्लाह ! जो हमारे प्रति, इस्लाम और मुसलमानों के प्रति बुराई का भाव रखते हैं, उसे तू अपनी ही ज़ात में व्यस्त कर दे और उसके फ़रेब व चाल को उलटा उसके के लिए वबाल बना दे।
हे अल्लाह! मुद्रास्फीति, महामारी, ब्याज बलात्कार, भूकंप एवं आज़माइशों को हमसे दूर कर दे और प्रत्येक प्रकार के आंतरिक एवं बाह्य फ़ित्नों (उत्पीड़नों) को हमारे ऊपर से उठा ले ,सामान्य रूप से समस्त मुस्लिम देशों से और विशेष रूप से हमारे देशों से ऐ दोनों जहां के पालनहार! हे अल्लाह! हमारे ऊपर से महामारी को दूर कर दे, नि: संदेह हम मुसलमान हैं।
हे हमारे रब! हमें दुनिया और आख़िरत में समस्त प्रकार की अच्छाई दे, और नरक की यातना से हम को मुक्ति प्रदान कर।
ए अल्लाह के दासो! निःसंदेह अल्लाह तआला न्याय का, अच्छाई का एवं परिजनों के साथ सुंदर व्यवहार का आदेश देता है, अशिष्ट गतिविधियों एवं क्रूरता व दुरुपयोग से रोकता है। वह स्वयं तुम्हें परामर्श देता है कि तुम नसीहत प्राप्त करो।
तुम अल्लाह का ज़िक्र (याद )करो वह तुम्हें याद करेगा उसकी नेमतों पर उसके आभारी रहो वह तुम्हें अधिक नेमतें (आशीर्वाद) देगा अल्लाह का ज़िक्र बहुत बड़ी चीज़ है, अल्लाह तुम्हारे समस्त कार्यों एवं गतिविधियों से अवगत है।
लेखक: माजिद बिन सुलेमान अलरसी
०५ रबी-उल-सानी ,सन् १४४२ हिजरी
जूबैल,सऊदी अरब
अनुवाद: फैज़ुर रह़मान हि़फज़ुर रह़मान तैमी
@Ghiras_4T